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नक़्शे में ऊपर कि तरफ नार्थ होता है। बचपन में ही जब नक्शा देखना सिखाया जाता है तभी ये बता दिया जाता है। इसके साथ ही हमने ये भी सीख लिया था की NEWS का फुल फॉर्म नार्थ, ईस्ट, वेस्ट, साउथ होता है। सचमुच NEWS कोई abbreviation होता है या नहीं ये तो पता नहीं लेकिन उत्तर को पहचानने कि दो मुख्य वजहें तो नजर आती है। एक तो ये है कि कम्पास में सुई नार्थ-साउथ ही पॉइंट करती है तो नार्थ के हिसाब से ही लोग बाकि दिशाओं का अंदाजा लगाते होंगे। दूसरा ये है कि उत्तर में पोल स्टार होता है, ध्रुव तारे कि मदद से लोग यात्रा के दौरान अपना रास्ता तय करते होंगे।
ध्रुव तारे के नाम के पीछे भी भारत में एक कहानी होती है। कहानी है ध्रुव कि, वो एक राजा उत्तानपाद के पुत्र थे। उनकी माता थी सुनीति, लेकिन राजा को अपनी दूसरी पत्नी सुरुचि ज्यादा प्रिय थी। एक दिन जब बालक ध्रुव अपने पिता कि गोद में बैठना चाहते थे तो उनकी सौतेली माता सुरुचि ने ध्रुव को गोद से उतार दिया। साथ ही ये भी कहा कि पिता कि गोद में बैठने का इतना ही शौक है तो भगवान विष्णु जो पूरे जगत के पालनकर्ता हैं, उनकी गोद में जाकर बैठ जाये ! सुरुचि का मतलब था कि मरने के बाद आदमी भगवान के पास होता है, तो वो ध्रुव के मर जाने कि बात कर रही थी, लेकिन ध्रुव छोटे थे और उन्होंने शब्दों को पकड़ कर सचमुच विष्णु की गोद में जा बैठने की ठान ली।
अपनी माता सुनीति के समझाने बुझाने पर भी वो माने नहीं। आखिर तपस्या करने की इजाजत लेकर वो निकल पड़े। रास्ते में उनकी मुलाकात नारद मुनि से हो गई। ध्रुव को तप के लिए कोई मन्त्र-विधि भी नहीं आती थी, तो नारद ने उन्हें वो भी सिखा दिया। अक्सर जो “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का मन्त्र सुनाई दे जाता है वो मन्त्र नारद ने ध्रुव को तपस्या के लिए सिखाया था। माना जाता है कि ध्रुव को छह महीने तपस्या करनी पड़ी थी। उन्हें भगवान् के दर्शन भी हुए और बाद में राजा उत्तानपाद के राज्य के वो उत्तराधिकारी भी बने। अब तप के समय के हिसाब से देखें तो ध्रुव को फल काफी ज्यादा मिला है। जब तक लोगों को ध्रुव तारे का नाम याद रहेगा, तब तक ये नाम क्यों पड़ा था ये किस्सा भी याद आ जायेगा।
जिन लोगों को महान कहा जाता है, जिनकी जीवनियाँ लिखी और पढ़ी जाती हैं उनमें से ज्यादातर को देखेंगे तो इसी किस्म का कुछ नजर आता है। उन्होंने कुछ साल मेहनत की और सदियों के लिए इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा लिया है। नेपोलियन, एलेग्जेंडर, अकबर, शेक्सपियर, आइंस्टाईन किसी ने भी उतने साल मेहनत नहीं की है जितने साल से इतिहास ने उन्हें याद रखा है। अच्छे और बुरे दोनों किस्म के काम के नतीजे ऐसे ही कई गुना बढ़ा-चढ़ा के मिलते आप अपने आस पास कभी भी देख सकते हैं। अर्जुन ने ऐसे ही प्रश्न भगवान् के सामने छठे अध्याय में रखे थे। अगर किसी ने थोड़े ही दिन आध्यात्मिक मार्ग पर प्रयास किया हो और फिर छोड़ दे तो क्या होगा ? कितने समय कि मेहनत का क्या नतीजा होगा ? यहाँ कृष्ण अर्जुन को cyclic concept समझा रहे होते हैं। जन्म, बाल अवस्था, युवावस्था, फिर बुढ़ापा, मृत्यु और फिर जन्म ये एक चक्र कि तरह चल रहा होता है।
अध्यात्म कि दिशा में प्रयास का फल, जीवन चक्र जैसे विषयों पर श्रीमद भगवतगीता के आत्मसंयम योग नाम के छठे अध्याय में चर्चा कि गई है। ध्यान जैसे विषयों पर भी यहीं बात कि गई है। इस बार ध्रुव तारे और दिशाओं के एक किस्से के बहाने हमने आपको (धोखे से) गीता का छठा अध्याय पढ़ा दिया है।
बाकी ये नर्सरी के लेवल का है और पीएचडी के स्तर के लिए आपको खुद पढ़ना पड़ेगा, क्योंकि अंगूठा छाप तो आप हैं नहीं, ये तो याद ही होगा ?
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