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भारत में अभी का पढाई का तरीका देखेंगे तो शायद दर्ज़नों कमियां दिखेंगी। पाठ्यक्रम में किसी भी किस्म के बदलाव कि चर्चा भी कि जाये तो उसे फ़ौरन से पेश्तर भगवाकरण भी घोषित कर दिया जाता है। समय के साथ परिवर्तन ना होने के नतीजा ये भी होता है कि जब कॉलेज से कोई छात्र बाहर आ कर नौकरी कि तलाश में जुटता है तो उसे बड़ी मुश्किल होती है। इंटरव्यू लेने वालों से, या छोटे-बड़े बिज़नस करने वाले लोगों से भी पूछेंगे तो पता चलेगा कि ज्यादातर नौकरी की तलाश में आये लोगों को काम का कुछ भी पता नहीं होता। इस मामले में पुराना गुरुकुल वाला सिस्टम थोड़ा बेहतर तो जरूर था। छात्रों को कृषि जैसी चीज़ों के बारे में पता होता था। छात्र सफ़र भी कर रहे होते थे तो लोगों से बात चीत करने कि समझ होती थी, कल्चर में अलग अलग जगहों पे फर्क होता है ये भी पता होता था।
सीखने के लिए यात्रा करना बहुत जरुरी होता है। सिर्फ किताबों से सारी चीज़ें नहीं सीखी जा सकती, कम्युनिकेशन और कल्चर सेंसिटिविटी आदमी यात्रा में अपने आप ही सीख जाता है। ऐसे ही एक पुराने गुरुकुल का किस्सा है जहाँ कुछ छात्र अपने गुरु के पास रहते थे। एक बार दो चार छात्र किसी यात्रा पर निकले थे और वापिस गुरुकुल लौट रहे थे। रास्ते में एक छोटी सी बरसाती नदी थी। नदी के किनारे एक महिला खड़ी थी जिसे नदी पार तो करनी थी मगर उसे नदी की गहराई का अंदाजा नहीं था। इसलिए वो पानी में उतरने से हिचकिचा रही थी। छात्र जब वहां पहुंचे तो उन्होंने कहा की इस नदी में पानी कम होता है। महिला फिर भी दुविधा में थी तो एक छात्र बोला कि वो उसे कंधे पर बिठा कर नदी पार करवा सकता है।
इस तरह महिला को एक छात्र ने कंधे पर बिठाया और सबने नदी पार की। छात्रों के दल में एक चुगलखोर किस्म का भी था। सभी छात्र ब्रह्मचारी थे इसलिए उन्हें किसी स्त्री को नहीं छूना चाहिए था। तो उसने गुरु को ये बात बताने कि सोची। कुछ दिन के सफ़र के बाद जैसे ही सब छात्र गुरुकुल पहुंचे तो चुगलखोर छात्र ने फ़ौरन गुरूजी को बताया कि इसने महिला को कंधे पर बिठा कर नदी पार करवाई थी ! ब्रह्मचर्य के व्रत का इसने पालन नहीं किया। गुरु ने छात्र से पुछा तो पता चला कि किसी महिला कि मदद कि तो थी। लेकिन मामूली सी मदद थी, इसलिए घटना को वो भूल भी गया था।
अब गुरूजी मुस्कुरा कर चुगली करने वाले छात्र से बोले, वत्स इसने तो थोड़ी देर के लिए ही महिला को कंधे पर बिठाया, तुमने तो कई दिनों से, घटना और महिला को मन में बिठा रखा है ! तुम्हारे व्रत का तो कहीं ज्यादा नुकसान हो गया है !
श्रीमद् भगवतगीता में जब भगवान् श्री कृष्ण एक बार कर्म की महत्ता बताते हैं और फिर ज्ञान कि तो अर्जुन फिर से कंफ्यूज हो जाता है। तो कृष्ण समझाते हैं कि संन्यास का मतलब दुनियां कि सब चीज़ों को छोड़ना नहीं होता, बल्कि उनमें आसक्ति को छोड़ना होता है। आत्मज्ञानी व्यक्ति उंच-नीच, बड़े-छोटे, स्त्री-पुरुष या अमीर-गरीब जैसे भेद करने के बदले हर जीवात्मा में परमात्मा को ही अनुभव करेगा। यही गीता के कर्मसन्यास योग नाम के पांचवे अध्याय का विषय है। ज्ञान और निस्वार्थ कर्म दोनों ही रास्ते जीवन में सुख और मृत्यु पर मुक्ति कि ओर ले जाते हैं। इस बार शिक्षा और यात्रा के एक किस्से के बहाने हमने आपको (धोखे से) गीता का पांचवा अध्याय पढ़ा दिया है।
बाकी ये नर्सरी के लेवल का है और पीएचडी के स्तर के लिए आपको खुद पढ़ना पड़ेगा, क्योंकि अंगूठा छाप तो आप हैं नहीं, ये तो याद ही होगा ?
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