Saturday, November 11, 2017

#Random_Musings_On_Bhagwat_Gita 7

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एक दिन एक गुरुकुल में गुरूजी ने अपने छात्रों को सिखाया कि हर जीव में परमात्मा का निवास है। इसलिए सभी जीवों से बराबरी का बर्ताव करना चाहिए। सबको बराबर सम्मान देना चाहिए। छात्रों ने रट लिया कि सबमें परमात्मा का निवास है और वो आस पास के सभी प्राणियों के प्रति सम्मान का भाव भी रखने लगे। एक दिन जब छात्र पास के ही एक गाँव में भिक्षा लेने पहुंचे तो अचानक कुछ कोलाहल सुनाई दिया।
छात्रों ने मुड़कर देखा तो सामने एक क्रुद्ध बैल भड़का हुआ चला आ रहा था और लोग उसे देखकर रास्ते से हट रहे थे। पीछे पीछे बैल का मालिक भी लोगों को हटने के लिए कहता चिल्लाता हुआ आ रहा था और बैल की रस्सी पकड़ने की कोशिश कर रहा था। लेकिन बैल भड़का हुआ था तो वो पकड़ में नहीं आ रहा था। बाकी छात्र तो गुस्साए हुए बैल को देखकर हट गए मगर एक छात्र नहीं हटा। बैल नजदीक आया, रास्ते में खड़े छात्र को उठा कर पटक दिया और आगे चला। बैल को थोड़ी देर में काबू कर लिया गया और आश्रम में भी छात्र के घायल होने कि खबर भिजवाई गई।
थोड़ी देर में गुरूजी भी भागते हुए गाँव तक पहुंचे तो लड़के से पुछा वत्स जब सब हट गए थे तो तुम बीच में ही खड़े क्यों रहे ? छात्र बोला गुरूजी आपने ही तो समझाया कि सबमें परमेश्वर होते हैं, तो मुझे लगा पागल बैल में भी वही होंगे ! गुरूजी बोले बच्चे उसके पीछे ही किसान भी तो था ना ? उसकी बातों में भी तो परमात्मा कि आवाज सुनते और हटना चाहिए था न ? सबमें परमात्मा होते हैं ये सोचकर बाघ के गले लग जाना अक्सर मूर्खता ही सिद्ध होती है।
हिंदी में शिक्षा, विद्या, और ज्ञान तीनो अलग अलग शब्द हैं। इनका अर्थ मिलता जुलता सा लगता हो लेकिन होता अलग अलग है। जैसे स्कूल को हिंदी में विद्यालय तो कहते हैं, लेकिन शिक्षालय या ज्ञानालय नहीं कह सकते। कारण ये है की शिक्षा जब आपको दी जाती है तो उसमें अपने अनुभव और जानकारियां जोड़कर उस से आप अपने लिए विद्या बना लेते हैं। फिर विद्या के इस्तेमाल से ज्ञान होता है। शिक्षा बाहर से आएगी, शिक्षित व्यक्ति फिर कभी किसी विषय का विद्वान भी हो सकता है, विद्वान अपने ज्ञान का कई बार इस्तेमाल देख देख कर आगे ज्ञानी भी हो जाते हैं। शिक्षित ही हर बार ज्ञानी भी होगा ऐसा जरूरी नहीं होता।
श्रीमद् भगवत गीता के ज्ञानविज्ञानयोग नाम के सातवें अध्याय में भगवान् श्री कृष्ण ऐसे ही विषयों कि चर्चा करते हैं। बीमार या किसी मुसीबत में पड़ा व्यक्ति भी भगवान् को याद करेगा, धन या ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिए भी कई लोग भक्त हो जाते हैं। कभी कभी लोग सिर्फ जानना चाहते हैं कि ईश्वर है क्या ? तो वो भी जानने कि कोशिश में जुट जाते हैं, और आखरी जो जान चुके हैं वो भी भगवान के ही चिंतन में डूबे रहते हैं। इन सभी किस्म के भक्तों कि चर्चा, और उनके ज्ञान के स्तर कि चर्चा गीता का सातवां अध्याय है। बैल और जरा कम समझने वाले चेले की कहानी में हमने आपको सातवां अध्याय पढ़ा दिया है।
बाकी ये नर्सरी के लेवल का है और पीएचडी के स्तर के लिए आपको खुद पढ़ना पड़ेगा, क्योंकि अंगूठा छाप तो आप हैं नहीं, ये तो याद ही होगा ?

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