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स्कॉटलैंड नाम का एक देश हुआ करता था जो बाद में यूनाइटेड किंगडम का हिस्सा हो गया। अगर अंग्रेजी फिल्मों के शौक़ीन हैं तो आपको पता होगा कि लन्दन के पुलिस मुख्यालय को भी स्कॉटलैंड यार्ड कहा जाता है। शर्लाक होल्म्स से परिचित लोग भी इस नाम से वाकिफ होंगे। तो ये किस्सा उसी स्कॉटलैंड नाम कि जगह का है। वहां एक गरीब किसान रहता था जिसके पास आय के स्रोत बहुत अच्छे नहीं थे। एक दिन वो अपने झोपड़े में था कि अचानक उसे चीखने की आवाज़ सुनाई दी। किसान भाग के आवाज़ लगाने वाले के पास पहुंचा तो देखा कि एक बच्चा दलदल नुमा जमीन में फंस गया है। वो लगभग कमर तक फंस गया था और बचने के लिए छटपटा रहा था।
किसान ने फ़ौरन उसकी मदद कि, जैसे तैसे दलदल से लड़के को खींच कर निकाला और उसकी जान बचाई। लड़का थोड़ी देर में सँभालने पर अपने घर गया और किसान भी लौट आया। अगली ही सुबह किसान के दरवाजे पर एक आलिशान घोड़ा गाड़ी आ के रुकी और उस से उतर कर लार्ड रैंडल्फ़ चर्चिल किसान से मिलने आये। उन्होंने बताया कि किसान ने जिसे बचाया वो उनका बेटा है, इसलिए वो किसान को ईनाम देने आये हैं। लेकिन किसान बोला उसे तो अपने काम के बदले, कुछ चाहिये ही नहीं ! उसने तो निस्वार्थ भाव से एक लड़के को बचाया था, इनाम का कोई लालच नहीं था।
लार्ड चर्चिल सोच ही रहे थे की किसान को कैसे पुरस्कार दें कि इतने में किसान का बेटा झोपड़ी के दरवाजे पर दिखा। लार्ड चर्चिल ने कहा, चलो तुम पैसे नहीं लेना चाहते तो ना सही, मैं तुम्हारे बेटे की पढाई का इंतजाम कर देता हूँ। किसान के बेटे को इस तरह अच्छी जगह पढ़ने का मौका मिला। किसान के बेटे ने तरक्की भी की और लन्दन के सेंट मैरी मेडिकल स्कूल का ख्याति प्राप्त विद्वान बनकर निकला।
किसी बच्चे के दलदल में फंसने कि घटना के कई साल बाद, एक बार जब विंस्टन चर्चिल बीमार हुए तो उन्हें एक ही दवाई से बचाया जा सकता था। उस ज़माने में हाल में ही ढूँढी गई पेनिसिलिन नाम कि दवाई से उन्हें बचाया गया। अनोखी बात ये है कि विंस्टन चर्चिल, लार्ड रैंडल्फ़ चर्चिल के वो सुपुत्र थे जिसे किसान ने कीचड़ से बचाया था। उन्हें पेनिसिलिन देने वाले पेनिसिलिन के आविष्कारक थे, सर एलेग्जेंडर फ्लेमिंग। सर फ्लेमिंग उस किसान के बेटे थे जिसने विंस्टन चर्चिल को बचाया था और जिसके पढ़ने का इंतजाम लार्ड रैंडल्फ़ चर्चिल ने किया था।
आप इसे अजीब सा संयोग मानकर टाल सकते हैं, लेकिन अगर आपने थोड़ी दुनियां देखी है तो आपको पता होगा कि आपका किया आपके पास अपने आप लौट आता है। इसे कर्मफल का सिद्धांत कहा जाता है। दरअसल किसी भी काम को तीन हिस्से में बांटा जाता है। मन, यानि जब आपने कुछ करने के लिए सोचा। वाणी, जब आपने उसे करने की बात कि और कर्म यानि जब आपने सचमुच उस काम को किया। यही कारण है की हिन्दुओं के लिए अहिंसा का मतलब सिर्फ किसी को ना मारना ही नहीं होता, किसी के बारे में बुरा बोलना या बुरा सोचना भी हिंसा हो जाता है। अगर आप कानून देखेंगे तो हत्या के लिए सिर्फ हत्या सिद्ध करना काफी नहीं होता, सजा दिलवाने के लिए intent to murder भी proove करना पड़ता है। किसान का बिना किसी फल कि आशा के अपना काम कर देना सबसे ऊँचे स्तर कि साधना माना जाता है। लार्ड चर्चिल का किसान के बेटे कि मदद याद दिलाता है कि कर्म का फल तो होगा ही होगा। चर्चिल के बेटे को किसान के बेटे कि मदद ये याद दिला देती है कि अगर काम फल के लालच के बिना किया जाए तो उसका असर काम करने वाले पर नहीं आता, किसी और पर कभी भविष्य में भी जा सकता है। इसलिए लार्ड चर्चिल और किसान के गुजरने के कई साल बाद किसान का बेटा सर फ्लेमिंग हो जाता है और चर्चिल की मदद के लिए दवाई बन जाती है।
जैसा कि अब आप समझ गए हैं, ये कर्म फल, कर्म के हिस्से या प्रकार, कर्म करने या ना करने सम्बंधित प्रश्न सब श्रीमद् भगवतगीता के कर्मयोग नाम के तीसरे अध्याय का विषय है। इस बार हमने आपको (धोखे से) गीता का तीसरा अध्याय पढ़ा दिया है।
बाकी ये नर्सरी के लेवल का है और पीएचडी के स्तर के लिए आपको खुद पढ़ना पड़ेगा, क्योंकि अंगूठा छाप तो आप हैं नहीं, ये तो याद ही होगा ?
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