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गुरु द्रोणाचार्य का नाम आपने जरूर सुना होगा। किसी एक नारे में कहा भी जाता है, “द्रोणाचार्य अभी भी जिन्दा हैं” ! उनके कई प्रसिद्ध किस्सों में से एक किस्सा उनकी शस्त्र परीक्षा का किस्सा भी है। मेरे ख़याल से आपने उनके परीक्षा लेने के तरीके के बारे में सुन रखा होगा। अगर नहीं भी सुना तो चलिए हम फिर से याद दिला देते हैं। हुआ यूँ कि पांडवों और कौरवों कि शिक्षा पूरी हो चुकी थी और द्रोण जांचना चाहते थे कि शिष्य अच्छे से सीख गए या नहीं। दूर से ही दुश्मन को रोकने के लिए उस ज़माने में धनुष इस्तेमाल होते थे इसलिए द्रोणाचार्य ने धनुर्विद्या कि परीक्षा रखी।
उन्होंने एक पेड़ पर एक चिड़िया टांग दी। जाहिर था कि थोड़ी दूरी से उसपर निशाना लगाना था। एक एक करके वो छात्रों को बुलाते और निशाना लगाने को कहते। जैसे ही शिष्य निशाना लगता वो उस से पूछते वत्स क्या क्या दिख रहा है ? फिर वो तीर चलाने नहीं कहते, शिष्य को वापिस भेज देते। दुर्योधन ने निशाना लगाया तो उस से भी गुरु द्रोण ने पुछा कि क्या नजर आ रहा है। दुर्योधन ने बताया, पेड़ दिख रहा है, पत्ते हैं उसपर, डाली दिखती है जिसपर पक्षी धागे से टंगा है, आदि आदि। द्रोण ने सर हिलाया और उसे भी तीर चलाने नहीं कहा वापिस भेज दिया। फिर जब युधिष्ठिर कि बारी आई तो युधिष्ठिर ने भी कहा की उन्हें तो पेड़ के पीछे आसमान, पक्षी के पंखों का रंग आदि नजर आ रहा है। द्रोण ने उन्हें भी वापिस भेज दिया।
आखिर जब अर्जुन से उन्होंने पुछा तो अर्जुन बोले पक्षी दिख रहा है। द्रोण ने पुछा किस रंग का है, कैसा है तो अर्जुन बोले नहीं उतना नहीं दिख रहा, मैंने तो सर वाले हिस्से पर निशाना लगाया है ! अब द्रोण ने पुछा बच्चे यही बता दे कि सर कैसा है चिड़िया का ? चोंच कैसी है ? अर्जुन बोले गुरुदेव वो भी नहीं दिख रहा, बस चिड़िया की आँख दिख रही है मैंने वहीँ निशाना लगाया है ! द्रोण बोले बहुत अच्छे, चलाओ तीर। और पक्षी पर अर्जुन ने बिलकुल सही निशाना दाग दिया !
इस किस्से को आज के दौर में समझना हो तो आप भारत पाक का क्रिकेट मैच याद कर लीजिये। कोई न कोई रोमांचक ओवर चल रहा होता है और आप टीवी में चिपके होते हैं। ऐसे ही वक्त पर कभी पत्नी या माँ खाना खाने आने को कहती है, या और कोई छोटा मोटा सा काम कहती है। सुनाई देता है क्या ? बोलने पर तो छोड़िये चिल्लाने पर भी सुनाई नहीं देता ! क्या हो गया है ? सुनना बंद हो गया होता है क्या ? नहीं, टीवी की कमेन्ट्री तो सुन रहे थे आप ! सिर्फ बाकि कि आवाजें सुननी बंद कर दी हैं आपने। तो ये कंसंट्रेशन का लेवल अचानक आपमें जन्मा कहाँ से ? बाहर से अचानक आ गया ? टीवी देखते देखते कोई सिद्धि पा ली थी आपने ? नहीं, ये आपमें हमेशा ही है। सिर्फ इस तकनीक को याद रखना भूल जाते हैं आप। बिलकुल वैसे ही जैसे आत्मा हर शारीर में है, मगर याद नहीं।
ऐसे ही आप तेंदुलकर पर भी ध्यान दीजिये तो दिख जायेगा। उसके रिटायर होने की घोषणा क्रिकेट पंडितों ने कितनी बार की थी ? कितनी बार मिडिया ने कहा कि इस खिलाड़ी की क्षमता चुक गई है ? असर हुआ था तेंदुलकर पे ? उसका ध्यान बस उसके अपने खेल पर ही रह गया, किसने उसके बारे में क्या कहा इसका कभी जवाब देने की मेहनत भी नहीं की उसने। ऐसा ही मोदी करते दिख जायेंगे, अनगिनत आरोप लगे होंगे पिछले 15 – 20 साल में, वो हंस कर टाल देते हैं। बहुत पीछे तो खैर केजरीवाल भी नहीं ! वो तो खुद पर ही स्याही और अंडे भी फेंकवा सकते हैं ! इस से मिलती जुलती स्थिति को “स्थितिप्रज्ञ” होना कहते हैं। यानि ना मान की फ़िक्र है ना अपमान का भय। बस अपना काम किये जा रहे हैं।
अब पोस्ट में क्रिकेटर और राजनैतिक हस्तियों के साथ “आत्मा” और “स्थितिप्रज्ञ” जैसे शब्दों का इस्तेमाल देखने पर आप समझ गए होंगे कि ये पोस्ट ना तो क्रिकेट पर है, ना ही राजनीति पर। मगर इसकी पूरी संभावना है कि पहले पैराग्राफ में कुछ और ही समझकर आपने इसे पढ़ना शुरू किया था। तो इस चीज़ के लिए मेरा प्रिय डायलॉग है “सब माया है”। जिसे आप कुछ और समझ रहे होते हैं मगर हो कुछ और वैसी वाली “माया”। ये सब दरअसल श्रीमद् भगवतगीता के ब्रह्मज्ञान नाम के दुसरे अध्याय का विषय है। तो इस बार (धोखे से) हमने आपको गीता का दूसरा अध्याय पढ़ा डाला है।
बाकी ये नर्सरी के लेवल का है और पीएचडी के स्तर के लिए आपको खुद पढ़ना पड़ेगा, क्योंकि अंगूठा छाप तो आप हैं नहीं, ये तो याद ही होगा ?
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