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बहुत पुराने ज़माने कि बात है, शायद द्वापरयुग कि, और ये किस्सा भी शायद भगवान् कृष्ण ने अर्जुन को सुनाया था। तो किस्सा है एक साधू का, ऐसे साधू का जिसे वेद-आध्यात्म जैसे विषयों कि ज्यादा जानकारी नहीं थी। अब ऐसे में बेचारा साधू तपस्या कैसे करता ? ना तो उसे मन्त्रों कि ज्यादा जानकारी थी, ना ही उन्होंने किसी गुरु का आश्रय लिया था ! कठिनाई में पड़े साधू ने आखिर एक व्रत लिया। वो सिर्फ़ सच बोलने लगे। हमारी हिंदी फिल्मों के कोर्ट की कसम वाले सीन जैसा वो भी सच के सिवा कुछ नहीं कहते।
जंगल में एक कुटिया बना कर रहते थे, लेकिन 100% सच बोलने वाला तो अनोखा ही इंसान होगा, तो थोड़े ही दिन में आस पास के सब गाँव वाले भी उनके बारे में जान गए। महात्मा अब ‘सत्यकीर्ति’ के नाम से प्रसिद्ध हो गए। दूर दूर से लोग उनके दर्शन और आशीर्वाद के लिए भी आने लगे। एक रोज़ कि बात कि महात्मा सत्यकीर्ति अपनी कुटी के आगे ही बैठे थे इतने में जंगल में भागता हुआ एक आदमी दिखा ! देखने में ही व्यक्ति कोई व्यापारी लग रहा था और शायद जान बचा कर भाग रहा था। कुटी और साधू को देखकर व्यापारी अन्दर कुटी में जा छुपा।
सत्यकीर्ति कुछ कह पाते इस से पहले ही व्यापारी का पीछा कर रहे डाकू नंगी तलवारें लिए आ धमके। जंगल में ही रहने वाले डाकुओं को अच्छी तरह महात्मा के सच बोलने के बारे में पता था। उन्होंने आसान तरीका चुना और सीधा सत्यकीर्ति से ही पूछ लिया, बताओ वो व्यापारी भाग के किधर छुपा है ? अब सत्यकीर्ति के पास दो उपाय थे। एक तो वो झूठ बोलकर व्यापारी को बचा सकते थे, दूसरा सच बोलकर अपना व्रत बचा सकते थे। महात्मा सत्यकीर्ति ने व्रत बचाया और बता दिया कि व्यापारी कहाँ है।
व्यापारी मारा गया और इस एक पाप के कारण महात्मा सत्यकीर्ति को मोक्ष नहीं मिला।
कारण ये था कि जिस सत्य बोलने के पुण्य को महात्मा बचाना चाहते थे, उस से बड़ा धर्म होता था एक व्यक्ति कि जीवन रक्षा। ये बिलकुल वैसा ही है जैसा डाकुओं का हमला होने पर आप डाकू को ना मारकर अहिंसा के धर्म को बचाने कि सोचें, लेकिन असल में एक डाकू को मारकर आप कई लोगों को हिंसा से बचा रहे होते हैं। इसलिए एक वृहद् हिंसा को रोकने के लिए की गई छोटी हिंसा कहीं ज्यादा धार्मिक होगी। डाकू को मार देना चाहिए।
अगर English Literature या फिल्मों में रूचि है तो आप Hamlet के प्रसिद्ध डायलॉग “To be or not to be…” से वाकिफ़ होंगे। दरअसल ये किताबें जहाँ ख़त्म होती है श्रीमद्भगवतगीता वहीँ से शुरू होती है। आपने अभी अभी जो कहानी पढ़ी वो गीता का पहला अध्याय है। अर्जुन विषाद योग नाम के इस अध्याय में अर्जुन यही जानना चाहता था कि हिंसा उचित कैसे है ? कृष्ण समझा रहे होते हैं कि एक बड़े अनाचार को रोकने के लिए तुम एक अधर्म अपने सर लेकर पुण्य ही कर रहे हो। फ़िदायीन आतंकी खुद को थोड़ी देर में तो उड़ा ही देगा, उसे गोली मारने में पाप कहाँ है ?
बाकि पोस्ट के बहाने हमने आपको भगवतगीता का पहला अध्याय नर्सरी लेवल पर (धोखे से) पढ़ा दिया है, पीएचडी लेवल टाइप सीखने के लिए तो आप खुद पढ़ ही सकते हैं, अंगूठा छाप तो आप हैं नहीं ना ?
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