आचार्य श्री के कड़वे-प्रवचन के कुछ अंश
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1 |
" लक्ष्मी पुण्याई से मिलती है | मेहनत से मिलती हो तो मजदूरों के पास क्यों नहीं ? बुद्दी से मिलती हो तो पंडितो के पास क्यों नहीं ?जिन्दगी मैं अच्छी संतान ,सम्पति और सफलता पुण्य मिलती है | अगर आप चाहते हैं की आपका इहलोक और परलोक सुखमय रहे तो पुरे दिन में कम से कम दो पुण्य जरुर करिए | क्योकि जिन्दगी में सुख , सम्पति और सफलता पुण्याई से मिलती हैं | " |
2 |
" संसार में अड़चन और परेशानी न आये -यह कैसे हो सकता हैं | सफ्ताह मे एक दिन रविवार का भी तो आएगा ना | प्रक्रति का नियम ही ऐसा है की जिन्दगी मे जितना सुख -दुःख मिलना है ,वह मिलता ही है | मिलेगा भी क्यों नहीं , टेंडर मे जो भरोगे वाही तो खुलेगा | मीठे के साथ नमकीन जरुरी है तो सुख के साथ दुःख का होना भी लाजमी है | दुःख बड़े कम की चीज है | जिन्दगी मे अगर दुःख न हो तो कोई प्रभु को याद ही न करे | " |
3 |
" दुनिया मे रहते हुए दो चीजो को कभी नहीं भूलना चाहिए | न भूलने वाली चीज एक तो परमात्मा तथा दूसरी अपनी मौत | भूलने वाली दो बातो मे एक है - तुमने किसी का भला किया तो उसे तुरन्त भूल जाओ | और दूसरी किसी ने तुम्हारे साथ अगर कभी कुछ बुरा भी कर दिया तो उसे तुरन्त भूल जाओ | बस, दुनिया मे ये दो बाते याद रखने और भूल जाने जैसी है | |
4 |
" मरने वाला मर कर स्वर्ग गया है या नर्क ? अगर कोई यह जानना चाहता है तो इसके लिए किसी संत या ज्योतिषी से मिलने की जरुरत नहीं है , बल्कि उसकी सवयात्रा मे होने वाली बातो को गौर से सुनने की जरुरत है | यदि लोग कह रहे हो कि बहुत अच्छा आदमी था | अभी तो उसकी देस व समाज को बड़ी जरुरत थी , जल्दी चल बसा तो समजना कि व स्वर्ग गया है | और यदि लोग कह रहे हो कि अच्छा हुआ धरती का एक पाप तो कम हुआ तो समजना कि मरने वाला नर्क गया है | " ी से शुरु होती है | “ |
5 |
" माँ - बाप की आँखों मे दो बार ही आंसू आते है | एक तो लड़की घर छोड़े तब और दूसरा लड़का मुह मोड़े तब | पत्नी पसंद से मिल सकती है | मगर माँ तो पुण्य से ही मिलती है | इसलिए पसंद से मिलने वाली के लिए पुण्य से मिलने वाली को मत ठुकरा देना | जब तू छोटा था तो माँ की शय्यां गीली रखता था , अब बड़ा हुआ तो माँ की आँख गीली रखता है | तू कैसा बेटा है ? तूने जब धरती पर पहला साँस लिया तब तेरे माँ - बाप तेरे पास थे | अब तेरा फ़र्ज़ है की माता - पिता जब अंतिम सांस ले तब तू उनके पास रहे | " |
6 |
" दान देना उधार देने के समान है | देना सीखो क्योंकि जो देता है वह देवता है और जो रखता है वह राक्षक | ज्ञानी तो इशारे से ही देने को तेयार हो जाता है मगर नीच लोग गन्ने की तरह कूटने- पीटने के बाद ही देने को राजी होते है | जब तुम्हारे मन में देने का भाव जागे तो समजना पुण्य का समय आया है | अपने होश - हवास में कुछ दान दे डालो क्योंकि जो दे दिया जाता वह सोना हो जाता है और जो बचा लिया जाता है वह मिट्टी हो जाता है | भिखारी भी भीख में मिली हुई रोटी तभी खाए जब उसका एक टुकड़ा कीड़े - मकोड़े को डाल दे| अगर वह ऐसा नहीं करता तो सात जन्मो तक भिखारी ही रहेगा | " |
7 |
" पैसा कमाने के लिए कलेजा चाहिए | मगर दान करने के लिए उससे भी बड़ा कलेजा चाहिए | दुनिया कहती है की पैसा तो हाथ का मेल है | मैं पैसे को ऐसी गाली कभी नहीं दूंगा | जीवन और जगत मे पैसे का अपना मूल्य है , जिसे जुट्लाया नहीं जा सकता | यह भी सही है की जीवन मे पैसा कुछ हो सकता है , कुछ -कुछ भी हो सकता है , और बहुत -कुछ भी हो सकता है मगर 'सब-कुछ'कभी नहीं हो सकता | और जो लोग पैसे को ही सब कुछ मन लेते है वे पैसे के खातिर अपनी आत्मा को बेचेने के लिए भी तेयार हो जाते है | " |
Tuesday, August 18, 2015
Munishri Tarun Sagar Ji Maharaj's Kadve Pravachan Articles
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