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सनकी राजाओं और उनके अजीबो-गरीब शौक का आपने सुना होगा। ऐसे ही एक अजीब से राजा को अपने राज्य के सबसे बड़े मूर्खों को पुरस्कार देने कि सूझी। फ़ौरन उसने मंत्री को पकड़ा और उसे पांच सबसे बड़े मूर्खों को ढूंढ कर लाने रवाना हो जाने का हुक्म सुना दिया। मंत्री बेचारे ने कहा ये तो मुश्किल काम है, सफ़र में खर्चा भी आएगा। तो मुझे कुछ धन मिलना चाहिए कहकर उसने राजा से पैसे लिए और चल पड़ा। राज्य में थोड़ा घूमने टहलने पर उसे एक गाँव के बाहर दिखा कि गाँव के रास्ते में एक तरफ कई क्यारियां थी, फूल खिले थे लेकिन दुसरी तरफ कोई फूल नहीं था। उसे आश्चर्य हुआ तो उसने गाँव वालों से पूछा। गाँव वालों ने बताया कि फूल गाँव के बाहर रहने वाले किसी साधू ने लगाए हैं। तो मंत्री साधू से पूछने गया कि एक ही साइड उसने फूल क्यों लगाये ?
साधू बोला कि उसके पास एक साबुत घड़ा है और एक जरा टूटा हुआ है, जिनसे वो गाँव के कूएँ से पानी भरकर लाता है। टूटे घड़े से पानी रिसता है, इसलिए टूटे घड़े को हमेशा अपने कम उपयोगी होने का अफ़सोस होता है। ठीक वैसे ही जैसे कई लोगों को अपने कम बुद्धिमान होने का, या कम शक्तिशाली, या कम सुन्दर, कम धनवान होने का होता है। तो जिस तरफ बहंगी पर वो टूटा घड़ा लेकर आता है उस तरफ गिरा पानी बर्बाद ना हो, इसलिए साधू ने रास्ते में फूलों के बीज बिखेर दिए थे। जिस तरफ घड़ा सही था उस तरफ पानी छलका नहीं इसलिए फूल उगे नहीं, टूटे घड़े वाली तरफ, रोज़ पानी मिलने से फूल उग आये। टूटे घड़े के इस्तेमाल से साधू को दो फायदे हो रहे थे, पहला तो रास्ता खुबसूरत हो गया था।
दूसरा वो ये समझा पा रहा था कि, किसी मामूली सी कमी कि वजह से कोई पूरी तरह अनुपयोगी नहीं हो जाता। मंत्री साधू कि बात सुनकर खुश हो गया और उसे फ़ौरन पकड़कर दरबार में ले गया। राजा ने उसे जल्दी लौटा देखकर पुछा कि इतनी जल्दी कैसे आ गए ? तो मंत्री बोला मैं मूर्ख ढूंढ लाया हूँ। हमारे राज्य में इतने मूर्ख लोग बसते हैं जो सिर्फ एक छोटी मोटी कमी कि वजह से पूरे इंसान को बचपन में, विद्यालय में ही सिरे से खारिज़ कर देते हैं। ये जो साधू है ये ऐसे मूर्ख लोगों को सिखा रहा था कि हर आदमी में कुछ कमियां होती हैं, उन्हें पूरी तरह एक कमी कि वजह से नकारना नहीं चाहिए ! मूर्खों के सुधरने कि संभावना ढूँढता ये साधू निस्संदेह उन सबसे बड़ा मूर्ख है।
राजा ने हामी भरी, कहा हाँ, ये साधारण सी बात तो सबको पता होती है, लेकिन लोग बदलते नहीं अपनी आदत ! उनको सुधारने में जुटा ये साधू जरूर बड़ा मूर्ख होगा। लेकिन बात तो पांच मूर्ख लाने कि हुई थी, बाकि के मूर्ख कहाँ हैं ? मंत्री बोला, इतने मूर्खों से घिरा हुआ मैं पूरे राज्य में मूर्ख ढूंढ रहा था ! किन्ही पांच को यहीं से पकड़ के खड़ा कर देना चाहिए था मुझे तो ! इसलिए हुज़ूर दूसरा मूर्ख मैं हूँ। राजा ये भी मान गया। मंत्री आगे बोला, राज्य के विकास, सुरक्षा जैसे मुद्दे छोड़कर आप मुझे मूर्ख ढूँढने दौड़ा रहे हैं। तो गुस्ताखी माफ़ हो हुज़ूर, लेकिन तीसरे बेवक़ूफ़ आप हुए।
गलतियाँ, कमियां ढूंढ कर लोगों को बेकार घोषित करने कि जो बेवकूफी लोग स्कूल के ज़माने से रोज़ करते हैं उसकी याद दिलाने के लिए हमने सुबह-सुबह इतनी लम्बी कहानी लिख डाली है, तो चौथे बेवक़ूफ़ निस्संदेह हम खुद ही हैं। अब आप मेरी पिछले कुछ दिन की हरकत से वाकिफ हैं। हर रोज़ किसी ना किसी बहाने भगवत गीता पढ़ा देने की कोशिश हम करते ही हैं। फिर भी आपने यहाँ तक पढ़ा तो पांचवा मूर्ख कौन होगा ये बताने कि जरुरत नहीं होनी चाहिए।
दरअसल जब भी लम्बे चौड़े व्याख्यान दिए जाते हैं तो कुछ ना कुछ झूठ ही परोसा जा रहा होता है। न्यूटन ने कोई लम्बे चौड़े नियम नहीं दिए थे। आइन्स्टाइन का सापेक्षता का सिद्धांत बहुत लम्बा चौड़ा तो नहीं है, उनको जिस E=MC(2) के लिए जाना जाता है वो तो और भी छोटा सा है। इसके मुकाबले मोटी सरकारी फ़ाइलें देखिये, आपको पता होता है कि उनमें जितने विकास की बात की गई है उतना सचमुच नहीं हुआ है। मोटे पोथे कि जरुरत ही तभी पड़ती है जब धोखाधड़ी करनी हो। जो किसी लम्बी चौड़ी विचारधारा की मोटी विदेशों में छपी किताबें परोस रहा है वो निश्चित रूप से आपको ठगना चाहता है।
बेकार कि बातों पर ध्यान दिए बिना अपना काम किये जाना ही श्रीमद्भगवत गीता के अक्षरब्रह्म योग नाम के आठवें अध्याय का विषय है। इस अध्याय में आप आध्यात्म में इस्तेमाल होने वाले कई शब्दों का अर्थ भी सीख जाते हैं। यहाँ आवागमन का सिद्धांत भी है, जो ये बताता है की दुनियां किसी एक पॉइंट से शुरू होकर किसी दुसरे पॉइंट पर ख़त्म होने वाली सीधी रेखा नहीं है। ये एक चक्र कि तरह चलने वाली साइक्लिक व्यवस्था है, सब गोल घूमकर वापिस आएगा। पुनर्जन्म किस तरह आवागमन से अलग है, वो भी शायद आप सीख लेंगे। आपके सोचने का आपपे क्या असर हो सकता है वो भी ध्यान में आएगा।
तो जनाब इस तरह, साधू के घड़े कि जीवित प्राणियों जैसी भावनाएं होने के बहाने हमने आपको ये याद दिला दिया है कि आपकी सोच आगे बढ़कर किसी दिन आपको जिन्दा, सचमुच कि लगने लगती है। राजा और मंत्री कि मूर्खों को ढूँढने के बहाने ये बता दिया कि गीता में शब्द important हैं। सिर्फ 700 श्लोकों में जब कोई बात कहनी हो तो कोई भी शब्द फ़ालतू काफिया मिलाने, तुकबंदी के लिए इस्तेमाल किया हुआ नहीं होगा और आपको शब्दों को समझना होगा। टूटे घड़े का पानी टपकना जैसे waste नहीं हो रहा था, वैसे ही कोई कर्म भी बेकार नहीं होता। हरेक के Repurcussion होंगे। इस तरह (धोखे से) आपको गीता के आठवें अध्याय का सार पढ़ा दिया है।
बाकी ये नर्सरी के लेवल का है और पीएचडी के स्तर के लिए आपको खुद पढ़ना पड़ेगा, क्योंकि अंगूठा छाप तो आप हैं नहीं, ये तो याद ही होगा ?
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